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कहानी श्रीगणेश की

AjayShrivastava's blogs
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भगवान शिव को माता पार्वती से मिलने का समय बहुत कम मिलता था अधिक समय वो ध्यान में रहते थे और कभी देवकार्य के लिए अभियानों में। भगवान श्रीगणेश इस बात को भलीभांति समझते थे सो जब भी शिव और पार्वती साथ होते तो वो किसी को पार्वती माता के महल में जाने ही नहीं देते थे जब तक कि माता या पिता आज्ञा नहीं देते थे। एक बार ऐसे समय वहां परशुराम पहुंच गए हमारे लाडले भगवान श्रीगणेश ने उनको साफ कह दिया कि वो न तो अंदर जाएंगे न परशुराम को जाने देंगे। इस बात पर वाद-विवाद शुरू हो गया जब ये बढ़ गया तो श्रीगणेश ने परशुराम को सूंड में लपेटकर फेंक दिया। परशुराम पूरे पाताल का भ्रमण करने निकल गये जब गति कम हुई तो वो वापस वहां पहुंच गये। पुन: विवाद होने लगा श्रीगणेश ने फिर से उनको उछाल दिया अब वो भूमंडल का भ्रमण करने निकल गये गति कम होने पर वो वापस पहुंच गये।श्रीगणेश ने फिर से उनको उछाल दिया और वो अब ब्रम्हांड में चले गये वहां से भी जब वो वापस आ गये तो वो अत्यंत क्रोधित हो गये और अपने आराध्य शिव का नाम लेकर परशु फेंका। श्रीगणेश परशु को नष्ट कर सकते थे पर पिता नाम सुनकर उनके नाम का मान रखने के लिए श्रीगणेश ने उसे दांत पर झेल लिया और उनका दांत टूट गया। इस कथा से पता चलता है हमारे श्रीगणेश कितने विनम्र और पिता के नाम का आदर करने वाले थे।

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