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मित्र, इस जीवन के पथ में बहुतेरे लोग तुमको मिलेंगे, जो तुम्हे हतोत्साहित करेंगे। कभी समय तुम्हारे अनुकूल नहीं होगा। तुम्हारा मन करेगा कि मैं स्वयं को खत्म कर लूं, क्योंकि यह सबसे सरल मार्ग दिखता है समस्याओं से पार पाने का। पर कोई भी निर्णय लेने से पहले स्वामी विवेकानंद की इस बात को समझ लो- तुम्हारे चरित्र को इस संसार में तुमसे अधिक श्रेष्ठता से कोई अन्य नहीं निभा सकता। तुम स्वयं को इस संसार में कमजोर क्यों समझते हो? क्या कारण है? पहले स्वयं को समझो तुम कमजोर क्यों हो? याद रखो, तुम पिंजरे में बंद सिंह के समान हो, तोड़ दो कायरता का पिंजरा, अपने सिंह को बाहर निकालो, उसे दहाड़ने दो, उसे लक्ष्य का शिकार करने दो। क्यों अपने सिंह को रोक रहे हो? क्या तुम में नहीं है असीम साहस और धैर्य। अंधकार-अंधकार करके रोओगे तुम… नहीं, इससे अंधकार नहीं दूर होगा। अंधकार दूर होगा जब दीपक जलाओगे, ज्ञान-कर्म का दीपक।
किस कारण से स्वयं को कमजोर समझते हो? उस नन्हीं सी चींटी को देखो, किस तरह से वो गिरती है, उठती है और मरते दम तक निराश नहीं होती, कर्मरत रहती है। जब एक नन्हीं सी चींटी इतना साहस करती है, तो तुम तो उससे कई अरब गुना सामर्थ्यवान हो। देखो तुम्हारी श्वासें कितने नि:स्वार्थ भाव से कर्मरत हैं, इसी भांति से कर्मरत हो जाओ।
तुम मरकर पलायन कर जाते हो पर तुम्हारे पीछे कितने स्वप्नों की हत्या तुम कर जाते हो। तुम्हारी मां के स्वप्न, पिता के अरमान, बहन-भाई के प्रति कर्तव्य। क्या तुम्हारी आत्मा को शांति मिलेगी? जन्म-जन्मातरों तक सूक्ष्म रूप से ये स्मृतियां तुम्हें जलाती रहेंगी?
क्या हुआ जो तुम पराजित हुए? याद रखो तुमने युद्ध किया इसलिए पराजित हुए। तुम कायर नहीं हो, योद्धा हो। योद्धा को ही पराजय मिलती है और हर पराजय यह सिखाती है कि जीत कैसे मिलेगी और कहां मिलेगी? क्या हुआ जो तुम छले गए, स्वयं को मत कोसो, आगे की ओर बढ़ो, समय तुम्हारा मार्गदर्शन करेगा। तुम स्वयं सामर्थ्यवान होते हुए, याचक की तरह भिक्षा मांगोगे, कहो मांगोगे, अपने पूर्वजों की आत्मा को अतृप्त करोगे, जिन्होंने शायद कभी यह स्वप्न देखा हो कि उनके वंशज उनके नाम को रोशन करेंगे। आत्मघात करना महापाप तो है ही, एक पलायन भी है। अपनी योग्यता को नजरंदाज करते हुए एक ऐसे मार्ग को चुनना है, जहां क्या गति है तुमको स्वयं नहीं मालूम।
निराशा क्या है? आत्मघात क्या है? और तुम यह क्यों करना चाहते हो, इस पर विचार करो और क्या इसका परिणाम तुमको वास्तव में शांति देगा? सद्साहित्य का पठन करो, सही मार्ग को चुनो, पहले स्वयं को पहचानों, उसके बाद अपने पथ का निर्धारण करो। दूसरों को यह बताओ कि तुम्हारा मार्ग क्यों श्रेष्ठ है और तुम उस पर किस प्रकार श्रेष्ठता का चिन्ह अंकित करोगे। मुझे तुम से आशा है कि तुम पलायन नहीं करोगे। तुम ही श्रीराम हो, तुम ही हनुमान हो, राधा हो तो महाकाली भी हो, तुम बुद्ध हो, तो चंड अशोक भी हो, समुद्र गुप्त हो, तुम आम्रपाली हो, तो दुर्गावती भी हो। स्वयं को अर्पित करने वाली भगिनी निवेदिता हो, तो अपने अधिकार के लिए तलवार उठाने वाली महारानी लक्ष्मीबाई भी हो।
जागो, अपने भीतर के पिंजरे को अभी तोड़ डालो, देखो तुम्हारे अंदर का सिंह कैसे दहाड़ता है, कैसे लक्ष्यों का शिकार करता है? वो कैसे आत्मघात के दैत्य का सीना फाड़कर उसका रक्त पीता है और सफलता के मार्ग की ओर दौड़ता है। तुम्हारे अंदर का सिंह कायरता के पिंजरे को तोड़ रहा है, मुझे आवाज आ रही है क्या तुम्हें आ रही है? वो आत्महत्या के विचार को फाड़कर खाने और सफलता के शिखरों की ओर दौड़ने को ललायित है। उसकी सहायता करो, करो, उसकी सहायता कर रहे हो न। जागो, जागो और अंदर के अंधकार को दूर करो। ऊँ तमसो मा ज्योतिर्गमय।
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