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कम्मो

AjayShrivastava's blogs
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कम्मो
ये कहानी कुछ समय पुरानी है जब ग्रामीण समाज में स्त्री अधिकारों को लेकर जागरूकता नहीं आई थी। हालांकि  कुछ पिछड़े ग्रामों में आज भी इस तरह की समस्या देखने को मिलती है। दया ने कम्मो के देह की नहीं मन की सुंदरता देखी ,त्याग और तपस्या देखी। हमारे आसपास ही बहुत से ऐसे लोग हैं जो कि देखने में सुंदर नहीं हैं पर उनका मन साफ और सुंदर है। लोग देह की सुंदरता को ही श्रेष्ठ मान लेते हैं जो कि गलत है। आज भी कई कम्मो ऐसी हैं जिनको दया जैसी दृष्टि से देखने वाला कोई  नहीं है वो घुट-घुट कर मरने को विवश हैं। कई पुरुष भी ऐसी श्रेणी में आते हैं।
———–
दया ने कम्मो के होंठों को चूम लिया और वो कम्मो को गोद में उठाकर कड़े से तखत तक ले गया। कम्मो उस कड़े तखत पर भी  एक सुकून से लेट गई जिस प्यार और पूर्णता की उसे तलाश आज तक थी। वो आज यूं मिल जाएगी, वो जानती न थी। दया ने कम्मो के पांवों को चूम लिया। पायल छनक उठी, ये आप क्या कर रहे हैं?
कम्मो ये मेरा वो प्राश्चित है जो मैंने उस पाप के लिए किया है जो मुझसे हो गया है। मैंने तुम्हे हमेशा एक देह के रूप में देखा पर तुम्हारी आत्मा की सुंदरता से मैं विलग सा रहा। तुम मुझे अपने में मिलाकर पूर्ण कर दो।
ये आप क्या कह रहे हैं मैं आपकी दासी हूं।
मुझे और लज्जित न करो,  इस वाक्य के साथ दया अतीत की यादों में डूब गया।
दया शहर में सरकारी मुलाजिम होकर  कलेक्टर साहब का नौकर था। शहर में रहना था। छुट्टियों में वो गांव आ जाया करता था।  परिवार में  सबसे बड़े दया के दो छोटे भाई बहन थे जो कि किशोरावस्था में पहुंच चुके थे। प्रौढ़ माता-पिता थे। घर की खेती-किसानी थी। दया की उम्र हो चुकी थी सो विवाह लाजमी था ही।
दस माह पहले दया का विवाह कम्मो से हुआ था। कम्मो के घर वालों जिनमें चाचा-चाची थे, ने उसे घूंघट में दिखकर बताया कि वो गुणी है और ठीकठाक नाकनक्श वाली है। गांव और भरोसे का मामला जान माता-पिता ने हां कर दी। दया उस समय शहर में ही था।
गांव आया तो उसकी शादी हो गई। दया इसको लेकर अनमना सा था। शादी की रात वो कमरे में पहुंचा फूलों की महकती सेज पर दुल्हन बैठी हुई थी। दया ने उसका घंूघट खोला और खोलतेे ही पीछे हट गया।
कम्मो श्याम वर्ण की थी। कुछ मोटी होकर शरीर से भी वो कमनीय नहीं थी। दया का दिल टूट गया और वो दरवाजा खोल बाहर निकल गया। परिवार भर में बात फैल गई।
दया की मां ने कहा, दया का नातरा होगा। घर वाले कम्मो को वापस ले जाएं।
चाचा-चाची ने अपनी बला टाली थी सो वो क्यों कम्मो को वापस ले जाते। जीये या मरे पति के घर रहे। बस यही बात सामने थी। दूर के काका ने समझाया, अगर इसे घर से निकाला तो समाज में नाम बिगड़ जाएगा। साल एक भर घर में रखो फिर इसका निपटारा कर देंगे। गांव में ऐसी बदï्किस्मत लड़कियां ज्यादती सहते-सहते या तो खुद जान दे दी थीं या परिवार वाले उसे हादसे का रूप देकर मार देते थे। सो अब कम्मो से घर में सारे काम लिए जाने लगे। बात तक भी कोई ढंग से न करता पर उसके मन में एक आशा थी कि दया एक दिन उसे जरूर स्वीकारेगा सो वो भी जुल्म सहती काम करती रही। खाने को मिला रूखा-सूखा सोने को घर से अलग छोटा कमरा। पलंग की जगह मिला कड़ा तखत।
बीच-बीच में उड़ती बातों से पता चला कि कम्मो को उसके घर वाले कम्मो करमजली कहते थे। उसके जन्मते साथ ही मां-बाप मर गए। शक्ल भी उसकी अच्छी न थी।  उसे लोग मनहूस मानते थे और गांव में उसका लगन न लगना था सो उन्होंने दया के परिवार वालों को बिना उसका चेहरा दिखाए लगन लगा दिया। अब जाए ससुराल, मरे-जीये अपनी  बला से।
कम्मो काम करती रही, बीमार हो या ठीक। गांव वाले भी चोरी छिपे मजाक उड़ाते कम्मो मां नहीं बनेगी कौन इसकी सेज पर इसे अपनाएगा। रहा पति दया, वो तो शादी दूसरे दिन ही शहर भाग गया।
दिन फिरे दशहरे से दीपावली के बीच दया गांव आया। उसने देखा कम्मो दिनभर काम करती रहती, सांस भर भी न लेती। वो दुखित हुआ। परिवार वाले भी उससे अच्छा व्यवहार न करते। खाने-सोने का कोई लिहाज न था। फिर भी बिना शिकायत चेहरे पर मुस्कान और पसीने से भीगा बदन लिए वो काम करती रहती।
दया जानता था कि कम्मो या तो आत्महत्या कर लेगी या हादसे का रूप देकर उसे कोई मार ही देगा चूंकी ऐसा होना उस पिछड़े गांव में संभव था और वो भी चाहता था कि कम्मो के बजाए उसके जीवन में कोई सुंदर सी लड़की आए।
करवाचौथ का दिन आया गांवभर में सुहागिनों सहित कुंआरी कन्याओं ने व्रत रखा। कम्मो ने भी बिना पानी पिये व्रत रखा। दिनभर काम किया और शाम को ये जानकर कि दया नहीं आएगा चांद को देख फिर दया का फोटो जो कमरे में लगा था को देख पानी पी लिया। इस बात ने दया को झकझोर दिया। वो खुद को रोक न सका  उसका सारा मन का मैल कम्मो के त्याग और तपस्या ने धो डाला। वो कम्मो के कमरे में घुस आया और सांकल लगा दी। कम्मो ने देखा तो वो चौंक गई। दया ने उसे आलिंगन में लिया और उसे चूम लिया। दया यथार्थ में आया।
उसने अपना सारा प्यार कम्मो पर उड़ेल दिया और कम्मो ने उस प्यार को अपने प्यार से स्वीकार किया। दया कम्मो को चूमता रहा। कभी उसके पायल से सजे पांवों को तो कभी चूडिय़ों से भरे हाथों को,  उसकी सिंदूर से भरी मांग को, कभी माथे को-बिंदिया को, नींदालु आंखों को, गालों को तो कभी उसे सूखते होंठों  को जो आज उसे कभी न खत्म होने वाले रस से भरे लग रहे थे। ये दया का प्यार था या कि उसकी कम्मो के प्रति कृतज्ञता  ये समझा पाना आसान नहीं है।
दूसरे दिन तड़के जब कम्मो काम करने के लिए उठने लगी तो दया ने उसका हाथ पकड़ लिया।
ये क्या कर रहे हो जी!
बस! कम्मो अब बहुत हो चुका।
घर का ही तो काम है!
मैंनें कहा न बहुत हो चुका, फिर दया ने बात बनाते हुए कहा,  कम्मो तू सचमुच बहुत सुंदर है मन से और तन से भी
हटो…हटो, कम्मो ने आग्रह किया।
दया ने कम्मो का आग्रह ठुकरा दिया और उसे फिर से उस कड़े तखत पर खींच लिया जो फूलों के सेज से भी ज्यादा सुकून दे रहा था। एकाएक कम्मो हंस पड़ी। दया ने उसे पहली बार हंसते हुए देखा था।  आज वो मानो उससे इतनी बड़ी हो गई थी कि उसे अपना प्यार कम लगने लगा था। दया और कम्मो फिर एक हो गए।
मां को सब मालूम चला। ये क्या बात हो गई। दया अंदर चला गया। बहुरिया सुबह न उठी। वो सुबह दस बजे दरवाजे तक पहुंचने की सोच ही रही थी कि दया बाहर आया। और सबको समझााया कि वो नौकर लगाएं कम्मो ज्यादा काम नहीं करेगी। करेगी उतना जितना एक बहू को करना चाहिए। साथ ही घर के सभी लोग उसकी पूरी इज्जत करें, क्योंकि वो घर की बड़ी बहू है। कम्मो का जीवन उसके साथ जुड़ा है। बाकी बात तो सब खुद समझते हैं, समझाने की जरूरत ना है। चलो कम्मो मां के पांव छूओ । दया और कम्मो ने मां के पांव छुए। मां अनमनी रही। धीरे-धीरे सबकुछ ठीक हो गया और कम्मो ने सभी का दिल जीत लिया। वो अपने अच्छे व्यवहार से कम्मो से भाभी बनी और भाभी से भाभी मां।

ये कहानी कुछ समय पुरानी है जब ग्रामीण समाज में स्त्री अधिकारों को लेकर जागरूकता नहीं आई थी। हालांकि  कुछ पिछड़े ग्रामों में आज भी इस तरह की समस्या देखने को मिलती है। दया ने कम्मो के देह की नहीं मन की सुंदरता देखी ,त्याग और तपस्या देखी। हमारे आसपास ही बहुत से ऐसे लोग हैं जो कि देखने में सुंदर नहीं हैं पर उनका मन साफ और सुंदर है। लोग देह की सुंदरता को ही श्रेष्ठ मान लेते हैं जो कि गलत है। आज भी कई कम्मो ऐसी हैं जिनको दया जैसी दृष्टि से देखने वाला कोई  नहीं है वो घुट-घुट कर मरने को विवश हैं। कई पुरुष भी ऐसी श्रेणी में आते हैं।

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दया ने कम्मो के होंठों को चूम लिया और वो कम्मो को गोद में उठाकर कड़े से तखत तक ले गया। कम्मो उस कड़े तखत पर भी  एक सुकून से लेट गई जिस प्यार और पूर्णता की उसे तलाश आज तक थी। वो आज यूं मिल जाएगी, वो जानती न थी। दया ने कम्मो के पांवों को चूम लिया। पायल छनक उठी, ये आप क्या कर रहे हैं?

कम्मो ये मेरा वो प्राश्चित है जो मैंने उस पाप के लिए किया है जो मुझसे हो गया है। मैंने तुम्हे हमेशा एक देह के रूप में देखा पर तुम्हारी आत्मा की सुंदरता से मैं विलग सा रहा। तुम मुझे अपने में मिलाकर पूर्ण कर दो।

ये आप क्या कह रहे हैं मैं आपकी दासी हूं।

मुझे और लज्जित न करो,  इस वाक्य के साथ दया अतीत की यादों में डूब गया।

दया शहर में सरकारी मुलाजिम होकर  कलेक्टर साहब का नौकर था। शहर में रहना था। छुट्टियों में वो गांव आ जाया करता था।  परिवार में  सबसे बड़े दया के दो छोटे भाई बहन थे जो कि किशोरावस्था में पहुंच चुके थे। प्रौढ़ माता-पिता थे। घर की खेती-किसानी थी। दया की उम्र हो चुकी थी सो विवाह लाजमी था ही।

दस माह पहले दया का विवाह कम्मो से हुआ था। कम्मो के घर वालों जिनमें चाचा-चाची थे, ने उसे घूंघट में दिखकर बताया कि वो गुणी है और ठीकठाक नाकनक्श वाली है। गांव और भरोसे का मामला जान माता-पिता ने हां कर दी। दया उस समय शहर में ही था।

गांव आया तो उसकी शादी हो गई। दया इसको लेकर अनमना सा था। शादी की रात वो कमरे में पहुंचा फूलों की महकती सेज पर दुल्हन बैठी हुई थी। दया ने उसका घंूघट खोला और खोलतेे ही पीछे हट गया।

कम्मो श्याम वर्ण की थी। कुछ मोटी होकर शरीर से भी वो कमनीय नहीं थी। दया का दिल टूट गया और वो दरवाजा खोल बाहर निकल गया। परिवार भर में बात फैल गई।

दया की मां ने कहा, दया का नातरा होगा। घर वाले कम्मो को वापस ले जाएं।

चाचा-चाची ने अपनी बला टाली थी सो वो क्यों कम्मो को वापस ले जाते। जीये या मरे पति के घर रहे। बस यही बात सामने थी। दूर के काका ने समझाया, अगर इसे घर से निकाला तो समाज में नाम बिगड़ जाएगा। साल एक भर घर में रखो फिर इसका निपटारा कर देंगे। गांव में ऐसी बदï्किस्मत लड़कियां ज्यादती सहते-सहते या तो खुद जान दे दी थीं या परिवार वाले उसे हादसे का रूप देकर मार देते थे। सो अब कम्मो से घर में सारे काम लिए जाने लगे। बात तक भी कोई ढंग से न करता पर उसके मन में एक आशा थी कि दया एक दिन उसे जरूर स्वीकारेगा सो वो भी जुल्म सहती काम करती रही। खाने को मिला रूखा-सूखा सोने को घर से अलग छोटा कमरा। पलंग की जगह मिला कड़ा तखत।

बीच-बीच में उड़ती बातों से पता चला कि कम्मो को उसके घर वाले कम्मो करमजली कहते थे। उसके जन्मते साथ ही मां-बाप मर गए। शक्ल भी उसकी अच्छी न थी।  उसे लोग मनहूस मानते थे और गांव में उसका लगन न लगना था सो उन्होंने दया के परिवार वालों को बिना उसका चेहरा दिखाए लगन लगा दिया। अब जाए ससुराल, मरे-जीये अपनी  बला से।

कम्मो काम करती रही, बीमार हो या ठीक। गांव वाले भी चोरी छिपे मजाक उड़ाते कम्मो मां नहीं बनेगी कौन इसकी सेज पर इसे अपनाएगा। रहा पति दया, वो तो शादी दूसरे दिन ही शहर भाग गया।

दिन फिरे दशहरे से दीपावली के बीच दया गांव आया। उसने देखा कम्मो दिनभर काम करती रहती, सांस भर भी न लेती। वो दुखित हुआ। परिवार वाले भी उससे अच्छा व्यवहार न करते। खाने-सोने का कोई लिहाज न था। फिर भी बिना शिकायत चेहरे पर मुस्कान और पसीने से भीगा बदन लिए वो काम करती रहती।

दया जानता था कि कम्मो या तो आत्महत्या कर लेगी या हादसे का रूप देकर उसे कोई मार ही देगा चूंकी ऐसा होना उस पिछड़े गांव में संभव था और वो भी चाहता था कि कम्मो के बजाए उसके जीवन में कोई सुंदर सी लड़की आए।

करवाचौथ का दिन आया गांवभर में सुहागिनों सहित कुंआरी कन्याओं ने व्रत रखा। कम्मो ने भी बिना पानी पिये व्रत रखा। दिनभर काम किया और शाम को ये जानकर कि दया नहीं आएगा चांद को देख फिर दया का फोटो जो कमरे में लगा था को देख पानी पी लिया। इस बात ने दया को झकझोर दिया। वो खुद को रोक न सका  उसका सारा मन का मैल कम्मो के त्याग और तपस्या ने धो डाला। वो कम्मो के कमरे में घुस आया और सांकल लगा दी। कम्मो ने देखा तो वो चौंक गई। दया ने उसे आलिंगन में लिया और उसे चूम लिया। दया यथार्थ में आया।

उसने अपना सारा प्यार कम्मो पर उड़ेल दिया और कम्मो ने उस प्यार को अपने प्यार से स्वीकार किया। दया कम्मो को चूमता रहा। कभी उसके पायल से सजे पांवों को तो कभी चूडिय़ों से भरे हाथों को,  उसकी सिंदूर से भरी मांग को, कभी माथे को-बिंदिया को, नींदालु आंखों को, गालों को तो कभी उसे सूखते होंठों  को जो आज उसे कभी न खत्म होने वाले रस से भरे लग रहे थे। ये दया का प्यार था या कि उसकी कम्मो के प्रति कृतज्ञता  ये समझा पाना आसान नहीं है।

दूसरे दिन तड़के जब कम्मो काम करने के लिए उठने लगी तो दया ने उसका हाथ पकड़ लिया।

ये क्या कर रहे हो जी!

बस! कम्मो अब बहुत हो चुका।

घर का ही तो काम है!

मैंनें कहा न बहुत हो चुका, फिर दया ने बात बनाते हुए कहा,  कम्मो तू सचमुच बहुत सुंदर है मन से और तन से भी

हटो…हटो, कम्मो ने आग्रह किया।

दया ने कम्मो का आग्रह ठुकरा दिया और उसे फिर से उस कड़े तखत पर खींच लिया जो फूलों के सेज से भी ज्यादा सुकून दे रहा था। एकाएक कम्मो हंस पड़ी। दया ने उसे पहली बार हंसते हुए देखा था।  आज वो मानो उससे इतनी बड़ी हो गई थी कि उसे अपना प्यार कम लगने लगा था। दया और कम्मो फिर एक हो गए।

मां को सब मालूम चला। ये क्या बात हो गई। दया अंदर चला गया। बहुरिया सुबह न उठी। वो सुबह दस बजे दरवाजे तक पहुंचने की सोच ही रही थी कि दया बाहर आया। और सबको समझााया कि वो नौकर लगाएं कम्मो ज्यादा काम नहीं करेगी। करेगी उतना जितना एक बहू को करना चाहिए। साथ ही घर के सभी लोग उसकी पूरी इज्जत करें, क्योंकि वो घर की बड़ी बहू है। कम्मो का जीवन उसके साथ जुड़ा है। बाकी बात तो सब खुद समझते हैं, समझाने की जरूरत ना है। चलो कम्मो मां के पांव छूओ । दया और कम्मो ने मां के पांव छुए। मां अनमनी रही। धीरे-धीरे सबकुछ ठीक हो गया और कम्मो ने सभी का दिल जीत लिया। वो अपने अच्छे व्यवहार से कम्मो से भाभी बनी और भाभी से भाभी मां।

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