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ये कहानी लोक कथाओं पर आधारित है। ये कथाएं ज्यादातर दक्षिण भारत में कही और सुनाई जाती हैं। इस कथा का पौराणिक साहित्य से कोई संबंध नहीं है और न ही इसका कोई प्राचीन उल्लेख ही कहीं मिलता है। इन कथाओं में बहुधा रावण को महिमामय और श्रीराम से अधिक महान बताया जाता है। प्रस्तुत कथा रोचक है और श्रीराम के काल को देखने का एक अनोखा नजरिया भी प्रदान करती है, पर इसे गंभीरतापूर्वक अंतिम सत्य मानकर निर्णय करना भूल होगी। ये रोचक कथा सभी के लिए प्रस्तुत है।
ये कथा है रावण के वध के बाद की। रावण की मृत्यु होने के बाद विभीषण का राजतिलक हो गया और लंका में शांति की स्थापना हो गई, लेकिन रावण का वध होने के बाद रावण के कुल के कुछ लोग अभी भी जीवित थे। इनमें रक्ष कुल की महिलाएं अधिक थीं। इनमें से कुछ के मन में श्रीराम के प्रति वैर भाव था और वो किसी भी मूल्य पर श्रीराम से प्रतिशोध लेना चाहती थीं। इनमें से एक थी शूर्पणखा की पुत्री, जिसके मन में श्रीराम के प्रति असीम द्वेष भरा था। वो युवा थी और अब श्रीराम से प्रतिशोध लेने के लिए उपस्थित थी। शूर्पणखा की युवा पुत्री ने अपनी मां से कहा कि वो श्रीराम और सीता से ऐसा प्रतिशोध लेगी कि उनका जीवन नर्क समान हो जाएगा।
वो श्रीराम के राज्य अयोध्या में आ गई और सीता जी की दासी के रूप में काम करने लगी। एक दिन उसने देवी सीता से कहा कि उसने महाबली दसमुखी रावण का बहुत नाम सुना है। वो उसे देखना चाहती थी पर वो तो श्रीराम के हाथों स्वर्गसिधार गए, तो क्या सीता जी उसको रावण का चित्र बनाकर बता सकती हैं कि वो कैसा दिखता था? भोली-भाली सीताजी ने उसे रावण का चित्र बनाकर दिखा दिया।
कुटिल शूर्पणखा की पुत्री वो चित्र लेकर श्रीराम के पास गई और उनसे कहा, आप तो सीता को बहुत प्रेम करते हैं पर क्या जानते हैं सीता वास्तव में रावण से प्रेम करती थीं। आपके भय से वो कुछ नहीं कहतीं, पर उनके मन में केवल और केवल रावण का प्रेम है। अगर मुझ पर विश्वास नहीं है, तो प्रमाण के रूप में ये चित्र देखिए। रावण का स्मरण करते हुए सीता ने ये चित्र विरह पीडि़त होकर बनाया है।
श्रीराम ने चित्र देखा तो वो क्रुद्ध हो गए और लक्ष्मण को बुलाकर कहा कि वो वन में ले जाकर सीता का वध कर दें। (ऐसा माना जाता है कि दक्षिण भारत में रावण को पूज्य माना जाता है। उसे महान बताने और श्रीराम को खलनायक के रूप में प्रस्तुत करने के लिए ऐसा कहा जाता हो कि श्रीराम ने सीता देवी के वध की आज्ञा दी हो।) लक्ष्मण आज्ञानुसार सीता देवी को वन में ले गए और वहां उनको छोड़कर वापस आ गए, लेकिन ये बात श्रीराम को नहीं बताई। श्रीराम अपने वचन पर दुखी हुए और सीता की विरहाग्नि में जलने लगे। वहीं, सीता भी विरह पीडि़ता होकर दुखित थीं।
ये देखकर शूर्पणखा की पुत्री प्रसन्न हो गई, पर सत्य अधिक दिन नहीं छिप सकता। जैसे ही शूर्पणखा की पुत्री का सत्य श्रीराम को पता चला, वो समझ गए कि सीता पवित्र और केवल और केवल श्रीराम के प्रति समर्पित थीं। श्रीराम दुखित हो गए और सीता का स्मरण कर विरह पीडि़त हो गए। लक्ष्मण से श्रीराम की येे दशा देखी न गई और उन्होंने सत्य श्रीराम को बता दिया। श्रीराम ने सीता देवी की खोज करवाई और सीता जी के मिलने पर उनको वापस बुलाकर महारानी के पद पर बिठाया। इसके बाद श्रीराम और सीता जी ने सुख पूर्वक राज किया।
लव-कुश का वर्णन नहीं मिलता पर ये बात प्रकट है कि यदि सीता वापस गई थीं, तो लव-कुश भी उनके साथ ही रहे होंगे। जहां सीता और श्रीराम हैं, वहां सदैव सुख और कल्याण होगा।
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