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दिल्ली: एक कुछ सुनी-बहुत अनसुनी कहानी

AjayShrivastava's blogs
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दिल्ली: एक कुछ सुनी-बहुत अनसुनी कहानी
अपराध कोई सा भी हो एक दलदल के समान होता है। एक बार यदि उसमें उतरे तो धंसते ही जाना है धंसते ही जाना है।
दिल्ली। सन् 1988, एक आदमी किसी इमारत में गार्ड की नौकरी करता था नाम था शिवमूरत द्विवेदी जिसके कुछ और भी नाम थे राजीव रंजन या शिवा जो शायद बाद में पड़े।
शिवमूरत द्विवेदी की ख्वाहिश थी अमीर लोगों में शामिल होने की। इसके लिए वो कोई भी हद पार कर सकता था। उसे साथ मिला कंकना देव का, इन दोनों ने कुछ समय साथ में काम किया। दोनों के बीच कोई दूरी नहीं रही। न आर्थिक न शारीरिक। फिर कंकना देव दिल्ली आ गई और शिवमूरत भी इसका पीछा करते-करते दिल्ली आ गया। यहां शिवमूरत ने दिल्लीवासियों के मिजाज को परखा और पैसा कमाने का एक नया जरिया ईजाद किया। उसने कंकना से कहा कि वो उसे एकसंत बनने में मदद करे। क्योंकि इससे वो अपने सारे पापों को धर्म की चादर में छिपा सकता है।
कंकना की मदद से शिवमूरत बाबा भीमानंद के रूप में परिवर्तित हो गया। उसने स्वयं को एक आध्यात्मिक गुरु का शिष्य बताया तो कभी स्वयं को साईं बाबा का अवतार बताया। इसके साथ ही एक नया और अनोखा नाम भी अपनाया इच्छाधारी बाबा, जो अपनी इच्छा से कभी शिवमूरत बन जाता था कभी बाबा भीमानंद तो कभी एक रैकेट का सरगना। अपने आश्रम में उसने एक जाने-माने आध्यात्मिक गुरु को भी बुलाया। धीरे-धीरे बाबा भीमानंद की ताकत बढऩे लगी। मीडिया में उसके नाचने और प्रवचन के वीडियो भी आने लगे।
भीमानंद ने अपना आश्रम या कि मंदिर कुछ ऐसा बनवाया था कि वहां के अपने कमरे से बैठकर वो झरोखों और खिड़कियों से पूरे मंदिर का निरीक्षण कर सकता था। दिल्ली की अय्याशी किसी परिचय की मोहताज नहीं है। इस बात को समझने में बाबा भीमानंद को समय नहीं लगा, उसने दिल्ली के हाईक्लास परिवारों की महिलाओं को अपने सेक्स रैकेट मे ं शामिल किया और शुरू हुआ धर्म की आड़ में एक गंदा खेल। यहां सफेदपोश खुद अय्याशी में शामिल थे तो कानून का डर था ही किसको। जब एक अदना गलीछाप गुंडा कानून को जेब में लेकर घूमता है तो भीमानंद तो…….
यहां भीमानंद को एक परेशानी का सामना भी करना पड़ा -अंग्रेजी। वहां महिलाओं को अंग्रेजी आती थी और वो हिंदी से बहुत अधिक सहज नहीं थीं। अब भीमानंद ने ठानी कि वो अंग्रेजी में बात करेगा। वो कॉपियों में हिंदी के वाक्यों का अंग्रेजी में अनुवाद करवाता और उसे याद करता। रात को इसकी क्लास लगती और ये सभी कॉलगल्र्स और महिलाओं को निर्देश देता था।
जब ताकत बढ़ती है तो दुश्मनों की संख्या और उनकी ताकत भी बढ़ जाती है। भीमानंद जिस व्यापार में उतरा था उसमें उसका मुकाबला अब दिल्ली की सेक्ससोर्स या सेक्सआउट लेट सोनू पंजाबन से था। जो इस व्यापार में उससे भी ज्यादा माहिर खिलाड़ी थी और महिला होने के कारण उसपर सबकी विशेष मेहरबानी भी थी। उसका रैकेट भीमानंद के रैकेट से बड़ा था। दिल्ली के अदने व्यापारी से लेकर राजनेताओं तक के बिस्तरों तक उसकी पूरी-पूरी पकड़ थी। पुलिस और प्रशासन इसे जिस तरह पकड़ते उसी तरह बाइज्जत वापस छोड़ भी आते।
सन् 2010 कॉमन वेल्थ गेम्स, कई विदेशी भारत में आते हैं। खेल देखने के लिए पर इस बीच उनको हर चीज की जरूरत होती है…हर चीज की..एक खूबसूरत जिस्म की भी। ऐसे में यदि वो जिस्म और खूबसूरती हिन्दुस्तानी हो तो आदमी पूरा ही शैम्पेन में डूब जाता है। इसे लक्ष्य करके भीमानंद ने अपने रैकेट को भावी भविष्य के लिए तैयार करना शुरू कर दिया वहीं सोनू पंजाबन भी इसी की तैयारी कर रही थी। दोनों इस मामले में आमने-सामने हो गए। इस मामले को लेकर भीमानंद ने क्या सोचा? समझें न समझें पर सोनू पंजाबन ने ठान ही लिया कि भीमानंद का पूरी तरह से सफाया ही कर दिया जाए।
इसके बाद भीमानंद का सच सब लोगों के सामने आ गया। एक आध्यात्मिक गुरु भी फंसे उनके नाम और उनकी तस्वीर का भीमानंद ने उपयोग किया था। भीमानंद फंसता गया। उसने ठगी भी की थी सो उसमें भी वो फंसा। सोनू पंजाबन अपना काम कर चुकी थी। खेल आज भी उतनी ही खेलभावना से जारी है और जारी रहेगा बस किरदार बदल जाएंगे कभी इच्छाधारी तो कभी सोनू पंजाबन!
अपराध कोई सा भी हो एक दलदल के समान होता है। एक बार यदि उसमें उतरे तो धंसते ही जाना है धंसते ही जाना है।

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अपराध कोई सा भी हो एक दलदल के समान होता है। एक बार यदि उसमें उतरे तो धंसते ही जाना है धंसते ही जाना है।

दिल्ली। सन् 1988, एक आदमी किसी इमारत में गार्ड की नौकरी करता था नाम था शिवमूरत द्विवेदी जिसके कुछ और भी नाम थे राजीव रंजन या शिवा जो शायद बाद में पड़े।

शिवमूरत द्विवेदी की ख्वाहिश थी अमीर लोगों में शामिल होने की। इसके लिए वो कोई भी हद पार कर सकता था। उसे साथ मिला कंकना देव का, इन दोनों ने कुछ समय साथ में काम किया। दोनों के बीच कोई दूरी नहीं रही। न आर्थिक न शारीरिक। फिर कंकना देव दिल्ली आ गई और शिवमूरत भी इसका पीछा करते-करते दिल्ली आ गया। यहां शिवमूरत ने दिल्लीवासियों के मिजाज को परखा और पैसा कमाने का एक नया जरिया ईजाद किया। उसने कंकना से कहा कि वो उसे एकसंत बनने में मदद करे। क्योंकि इससे वो अपने सारे पापों को धर्म की चादर में छिपा सकता है।

कंकना की मदद से शिवमूरत बाबा भीमानंद के रूप में परिवर्तित हो गया। उसने स्वयं को एक आध्यात्मिक गुरु का शिष्य बताया तो कभी स्वयं को साईं बाबा का अवतार बताया। इसके साथ ही एक नया और अनोखा नाम भी अपनाया इच्छाधारी बाबा, जो अपनी इच्छा से कभी शिवमूरत बन जाता था कभी बाबा भीमानंद तो कभी एक रैकेट का सरगना। अपने आश्रम में उसने एक जाने-माने आध्यात्मिक गुरु को भी बुलाया। धीरे-धीरे बाबा भीमानंद की ताकत बढऩे लगी। मीडिया में उसके नाचने और प्रवचन के वीडियो भी आने लगे।

भीमानंद ने अपना आश्रम या कि मंदिर कुछ ऐसा बनवाया था कि वहां के अपने कमरे से बैठकर वो झरोखों और खिड़कियों से पूरे मंदिर का निरीक्षण कर सकता था। दिल्ली की अय्याशी किसी परिचय की मोहताज नहीं है। इस बात को समझने में बाबा भीमानंद को समय नहीं लगा, उसने दिल्ली के हाईक्लास परिवारों की महिलाओं को अपने सेक्स रैकेट मे ं शामिल किया और शुरू हुआ धर्म की आड़ में एक गंदा खेल। यहां सफेदपोश खुद अय्याशी में शामिल थे तो कानून का डर था ही किसको। जब एक अदना गलीछाप गुंडा कानून को जेब में लेकर घूमता है तो भीमानंद तो…….

यहां भीमानंद को एक परेशानी का सामना भी करना पड़ा -अंग्रेजी। वहां महिलाओं को अंग्रेजी आती थी और वो हिंदी से बहुत अधिक सहज नहीं थीं। अब भीमानंद ने ठानी कि वो अंग्रेजी में बात करेगा। वो कॉपियों में हिंदी के वाक्यों का अंग्रेजी में अनुवाद करवाता और उसे याद करता। रात को इसकी क्लास लगती और ये सभी कॉलगल्र्स और महिलाओं को निर्देश देता था।

जब ताकत बढ़ती है तो दुश्मनों की संख्या और उनकी ताकत भी बढ़ जाती है। भीमानंद जिस व्यापार में उतरा था उसमें उसका मुकाबला अब दिल्ली की सेक्ससोर्स या सेक्सआउट लेट सोनू पंजाबन से था। जो इस व्यापार में उससे भी ज्यादा माहिर खिलाड़ी थी और महिला होने के कारण उसपर सबकी विशेष मेहरबानी भी थी। उसका रैकेट भीमानंद के रैकेट से बड़ा था। दिल्ली के अदने व्यापारी से लेकर राजनेताओं तक के बिस्तरों तक उसकी पूरी-पूरी पकड़ थी। पुलिस और प्रशासन इसे जिस तरह पकड़ते उसी तरह बाइज्जत वापस छोड़ भी आते।

सन् 2010 कॉमन वेल्थ गेम्स, कई विदेशी भारत में आते हैं। खेल देखने के लिए पर इस बीच उनको हर चीज की जरूरत होती है…हर चीज की..एक खूबसूरत जिस्म की भी। ऐसे में यदि वो जिस्म और खूबसूरती हिन्दुस्तानी हो तो आदमी पूरा ही शैम्पेन में डूब जाता है। इसे लक्ष्य करके भीमानंद ने अपने रैकेट को भावी भविष्य के लिए तैयार करना शुरू कर दिया वहीं सोनू पंजाबन भी इसी की तैयारी कर रही थी। दोनों इस मामले में आमने-सामने हो गए। इस मामले को लेकर भीमानंद ने क्या सोचा? समझें न समझें पर सोनू पंजाबन ने ठान ही लिया कि भीमानंद का पूरी तरह से सफाया ही कर दिया जाए।

इसके बाद भीमानंद का सच सब लोगों के सामने आ गया। एक आध्यात्मिक गुरु भी फंसे उनके नाम और उनकी तस्वीर का भीमानंद ने उपयोग किया था। भीमानंद फंसता गया। उसने ठगी भी की थी सो उसमें भी वो फंसा। सोनू पंजाबन अपना काम कर चुकी थी। खेल आज भी उतनी ही खेलभावना से जारी है और जारी रहेगा बस किरदार बदल जाएंगे कभी इच्छाधारी तो कभी सोनू पंजाबन!

अपराध कोई सा भी हो एक दलदल के समान होता है। एक बार यदि उसमें उतरे तो धंसते ही जाना है धंसते ही जाना है।

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