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पूर्णा

AjayShrivastava's blogs
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पूर्णा ने यहां-वहां देखा, गली में कोई नहीं था और कालू के घर से जोर-जोर से बच्चे के रोने का आवाज आ रही थी। उसने निश्चित किया कि कोई गली में नहीं है और मौका पाकर कालू के घर में घुस गई। उसकी गोद में उसका बच्चा सो चुका था। कालू ने उसे देखा तो सकपका गया। वो बच्चे के रोने से परेशान था। पूर्णा उस पर ध्यान दिये बगैर अंदर चली गई और कुछ क्षणों में बच्चे के रोने की आवाज आनी बंद हो गई। कालू उठा और उसने अंदर देखा पूर्णा की गोद में उसका नवजात था जिसे वो अपना दूध पिला रही थी। कालू की ओर उसकी पीठ थी। कालू जानता था और ये हो भी रहा था कि पूर्णा के आंखों से आंसुओं का झरना भी बह रहा था। कालू बीती यादों में खो गया।
कुछ साल पहले- पूर्णा कालू के पास ही रहती थी। ये उम्र का उन्माद ही था कि कालू की नजरें पूर्णा को घूरने लगी। सांवली पर सुंदर नैन-नक्श वाली पूर्णा पर यौवन पूरे शबाब के साथ आ रहा था। गली में जब उसकी पायल की आवाज गूंजती तो कालू कहीं से भी उसे देखने आ ही जाता था। जब कभी उत्सव के समय वो चमकदार लाल घाघरा बेस पहन कर निकली तो कालू का दिल धड़क-धड़क कर अधमरा हो जाता। उस पर उसके घने काले बालों में गुंथा गजरा, आंखों का कजरा हाथों की मेहंदी या कि पैरों का महावर, उस पर उसकी चूडिय़ों की खनक -पायल की छनक। जब वो पैरों में मेहंदी लगाती तो महावर से उस पर कलाकारी कर देती। उसके आते-जाते हवाओं में घुलती गुलाब के सस्ते पाउडर की तेज महक। ये सब श्रृंगार कालू पर ऐसे हमला करते मानों एक बकरे पर कई भेडिय़ों ने हमला कर दिया हो। यहां तो बकरा खुद ही मर रहा था।
कालू ने मौका देखना शुरू कर दिया। वो यहां-वहां से उसे घूरता। एक दिन पूर्णा ने उसे देख लिया। वो उसे देखकर मुस्कुरायी। हंसी की फंसी। कालू ने एक दिन उसे अकेला पाकर कह दिया कि वो उससे शादी करना चाहता है। उससे ज्यादा खूबसूरत लड़की गली में तो क्या पूरी दुनिया में नहीं होगी। पूर्णा मुस्कायी। कालू का सब्र टूट गया और उसने उसे ओंष्ठबंधित चुम्बन कर ही डाला। एक ओंष्ठबंधित चुम्बन। पूर्णा फिर हंसी- मुंह झूठा कर दिया तूने। और तूने जो मेरा मुंह गंदा किया- कालू पलट कर बोला। जा…वो तो रस था। हाय अब कब? ब्याह ले फिर रोज पी- पूर्णा भाग गई। अब खेल खुला था। कालू मौका पाकर उसे यहां-वहां ले जाता, कभी गन्ने का रस पिलाता तो कभी पानीपूड़ी खिलाता जो पूर्णा को बहुत पसंद थी। फिर वसूली भी करता। पूर्णा बहाने बनाकर घर से निकलती और मुंह पर कपड़ा बांधकर कालू के साथ बाइक पर पीछे बैठकर यहां-वहां मौज मारती। कभी-कभी वो कपड़े भी बदल लेती जो कालू अपने घर से ले आता था ताकि कोई उसे पहचाने नहीं। ये प्यार का पागलपन था उन्माद था या वासना समझना मुश्किल है।
पर हुआ वहीं जो होता है-पूर्णा की शादी कहीं और हो गई और कालू की कहीं और। पूर्णा का पति शराबी था। उसे घर वालों ने घर से भगा दिया तो वो गली में ही एक खोली लेकर रहने लगा। पूर्णा घर-घर बर्तन मांजती। जो पैसे मिलते उससे घर चलता और पति की शराब भी। पैसे कम होते तो पति उसे मारता। जब गली इस हंगामें से गूंजती तो कालू का खून खौल उठता। गली में जब कभी वो आमने-सामने होते तो कालू पूर्णा से नजरे न मिला पाता। उसने कभी अपने आई-बापू को बताया ही नहीं था कि वो पूर्णा को चाहता है वर्ना पूर्णा के हाथों में उसके नाम की मेहंदी लगने से कौन रोक सकता था? कालू के माता-पिता को ये बात कालू की शादी के समय नहीं मालूम थी कि उसकी पत्नी के दिल में छेद था। वो बीमार ही रहती थी। शादी हो नहीं रही थी इस लिए झूठ बोलकर ये शादी करवाई गई। कालू के आई-बापू ने कहा कि ये शादी तोड़ दे पर तब तक उसकी पत्नी गर्भवती हो चुकी थी। कालू इतना अमानुष भी नहीं था। ये अद् भुत संयोग ही था कि एक ओर कालू की पत्नी तो वहीं दूसरी ओर पूर्णा भी गर्भवती हुई। कालू के यहां बच्चा हुआ, पर कोई खुशी नहीं थी क्योंकि उसकी पत्नी बीमार हो रही थी और वो चल बसी। अब बच्चा हो गया कालू के जिम्मे। जिसे नाम दिया गया सोनू। सोनू की जिम्मेदारी यूं तो आई सम्हाल लेती थी पर वो भी कालू की बहन का जापा (प्रसव ) करवाने गई है उम्र को देखते हुए बापू भी उनके साथ है। पूर्णा को भी बेटा हुआ पर यहां खुशी मनाता कौन? मां या शराबी पिता। ननिहाल में लड्डृ बंटे पर वो भी कम पड़ गए।
कालू यादों से बाहर आया। शिशु की क्षुधा का अनुभव पूर्णा कर सकती थी। अंतत: उसे चरम पर प्रतीत हुआ कि मानों वो इस देह से बाहर एक महान पूर्णता का प्राप्त कर चुकी है। बच्चे के सोने के बाद वो अपने बच्चे को लेकर बाहर जाने लगी तो कालू ने उसका हाथ पकड़ लिया। एक बार तुमको रोक न पाया पर आज तुम्हे रोकना चाहता हूं। इसलिए नहीं कि सोनू को मां चाहिए बल्कि इस लिए कि पहले मैं तुझे प्यार करता था पर अब तुझे पूजना चाहता हूं। छोड़ मुझे, एक बार गंवाया था तूने, अब भूल जा। मैं ब्याहता हूं। मेरा मर्द है और ये बच्चा भी है। वो हाथ छुड़ाकर चली गई।
उस रात बहुत तेज बरसात हुई। रात को चीखने-चिल्लाने की आवाज आई। कालू बाहर निकला। देखा तो पूर्णा के घर में हंगामा हो रहा था। वो वहां पहुंचा तो देखा पति उसे मार रहा था। बाहर कोई था ही नहीं। वो अंदर जा घुसा और उसके पति को दूर ढकेल दिया। पूर्णा चिल्लाई- जा यहां से, ये हमारा मामला है। पूर्णा के पति ने मौका देखा और कालू के हाथ में उस्तरा मारकर भाग निकला। कालू हाथ दबाकर जाने लगा तो पूर्णा ने उसे रोका पर वो घर आ गया। पीछे-पीछे पूर्णा अपने दूधमुंहे बच्चे को लेकर आई जो सो चुका था। उसने उसे वहां लेटाया। और साथ लाए कपड़े से कालू के हाथ पर पट्टी बांधी। इतने में सोनू उठ गया और रोने लगा। पूर्णा ने उसे गोद में लेटाया आंचल की आड़ कर वो उसे दूध पिलाने लगी। क्यों अपने आपको सजा दे रही है, अपने पति को छोड़कर यहां आजा, कालू ने पूर्णा से कहा। और लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे? तू उनकी परवाह करती है। तू क्या सोचेगा, क्या अबला समझकर अपनाएगा या तेरे बच्चे को मां चाहिए इसलिए या बिस्तर काट रहा है अकेले। नहीं… तू अब वो नहीं रही जिससे मुझे प्यार था। अब तू वो हो गई है जिसे मैं पूजता हूं। पाठकों को लग सकता है कि ये ऐसा मौका हो सकता है जब वो दोनों भावनाओं में बह जाएं। नैतिकता की हदें तोड़ दें पर ऐसा वास्तविक जीवन में होता नहीं है।
कालू नीचे झुका और पूर्णा के पैरों का चूम लिया। पूर्णा सकपका गई, उसकी पायल बज उठी। सोनू अब तक सो चुका था उसे वहां लेटाकर और अपने बच्चे को लेकर वो चली गई, बिना कुछ बोले।
दूसरे दिन एक आदमी दौड़ता हुआ गली में आया। उसने बताया कि पूर्णा के पति की लाश नाले में पड़ी है। पुलिस आई और कालू को उठाकर ले गई। पूर्णा का पति मर गया था पर उसकी आंखों में एक आंसू न था। बस वो चुप थी। कालू को थाने मे ं बिठा लिया। कालू को पता था कि अब पिटाई होगी। हालांकि उसने सारी बात पुलिस को बता दी थी पर पुलिस वो गुंडा गैंग है जिसे सरकारी लाइसेंस मिला है। किस मामले को दबाना है और किसे उठाना है। किसे छोडऩा है और किसे पीटना है या एनकाउंटर करना है उसे पता है और वो बेलगाम है।
थाने में बड़े साहब आए ये देखकर कालू को अपने जयजय दादा का नुस्खा याद आ गया। उसने पेंट में मूत्रत्याग कर दिया। ये देखकर बड़े साहब चिल्लाए- अरे इसे बाहर करो ये तो साला गंदा कर रहा है। सिपाही ने दो चांटे मारकर उसे निकाल दिया। वो बाहर आ गया और भूमिगत हो गया, उसे परिचित ने बता दिया कि आई और बापू लौट आए हैं। कालू सोनू की तरफ से निश्चिंत हो गया। शार्टपीएम रिपोर्ट में पता चला कि शराब पर ड्रग्स के हाईडोज से पूर्णा का पति मरा था। कालू अब लौटा और घर पहुंचा। आई ने बताया कि सोनू पूर्णा के पास है वो उसे अपना दूध पिलाती है देखभाल करती है और रात को यहां वापस दे जाती है। कालू पूर्णा के पास पहुंचा। पूर्णा वहां थी नहीं। पूछता-पाछता वो पूर्णा के पास पहुंचा। पूर्णा अब महिला सेवा नामक एनजीओ से जुड़ी थी। यहां वो सिलाई की ट्रेनिंग ले रही थी। कालू ने उससे मिन्नत की- अब क्यों विधवा का जीवन जी रही है। मैं तुझसे शादी करना चाहता हूं। तुझे सहारा देने के लिए नहीं बल्कि तेरी चेतना और श्रद्धा से अपना उद्धार करने के लिए। लोगों की नजर को पढ़। पूर्णा हल्का सा हंसी- कालू अब मैं अपना जीवन जीना चाहती हूं, मेरा नाम पूर्णा है पर पहले मैं पूर्ण नहीं थी। पहले तेरे प्यार ने मुझे को खुद को भुला दिया। पति ने जिंदगी का मोह खत्म कर दिया पर तेरे और मेरे शिशुओं ने मुझे नाम से ही नहीं मन और आत्मा से भी पूर्णा बनने को प्रेरित किया है। मैं नहीं कहती की शादी करूंगी या नहीं। तुझसे या किसी और से जो भाएगा पर अब मैं अपना जीवन जीना चाहती हूं । समाज का डर मुझे नहीं। गलत लोगों से निपटना मुझे आता है। तू मेरी चिंता मत कर अपनी जिंदगी बना। मैं तेरा इंतजार करूंगा, कालू ने चलते वक्त कहा। पूर्णा हमेशा की तरह केवल मुस्कुरायी।

Blog 1पूर्णा ने यहां-वहां देखा, गली में कोई नहीं था और कालू के घर से जोर-जोर से बच्चे के रोने का आवाज आ रही थी। उसने निश्चित किया कि कोई गली में नहीं है और मौका पाकर कालू के घर में घुस गई। उसकी गोद में उसका बच्चा सो चुका था। कालू ने उसे देखा तो सकपका गया। वो बच्चे के रोने से परेशान था। पूर्णा उस पर ध्यान दिये बगैर अंदर चली गई और कुछ क्षणों में बच्चे के रोने की आवाज आनी बंद हो गई। कालू उठा और उसने अंदर देखा पूर्णा की गोद में उसका नवजात था जिसे वो अपना दूध पिला रही थी। कालू की ओर उसकी पीठ थी। कालू जानता था और ये हो भी रहा था कि पूर्णा के आंखों से आंसुओं का झरना भी बह रहा था। कालू बीती यादों में खो गया।

कुछ साल पहले- पूर्णा कालू के पास ही रहती थी। ये उम्र का उन्माद ही था कि कालू की नजरें पूर्णा को घूरने लगी। सांवली पर सुंदर नैन-नक्श वाली पूर्णा पर यौवन पूरे शबाब के साथ आ रहा था। गली में जब उसकी पायल की आवाज गूंजती तो कालू कहीं से भी उसे देखने आ ही जाता था। जब कभी उत्सव के समय वो चमकदार लाल घाघरा बेस पहन कर निकली तो कालू का दिल धड़क-धड़क कर अधमरा हो जाता। उस पर उसके घने काले बालों में गुंथा गजरा, आंखों का कजरा हाथों की मेहंदी या कि पैरों का महावर, उस पर उसकी चूडिय़ों की खनक -पायल की छनक। जब वो पैरों में मेहंदी लगाती तो महावर से उस पर कलाकारी कर देती। उसके आते-जाते हवाओं में घुलती गुलाब के सस्ते पाउडर की तेज महक। ये सब श्रृंगार कालू पर ऐसे हमला करते मानों एक बकरे पर कई भेडिय़ों ने हमला कर दिया हो। यहां तो बकरा खुद ही मर रहा था।

कालू ने मौका देखना शुरू कर दिया। वो यहां-वहां से उसे घूरता। एक दिन पूर्णा ने उसे देख लिया। वो उसे देखकर मुस्कुरायी। हंसी की फंसी। कालू ने एक दिन उसे अकेला पाकर कह दिया कि वो उससे शादी करना चाहता है। उससे ज्यादा खूबसूरत लड़की गली में तो क्या पूरी दुनिया में नहीं होगी। पूर्णा मुस्कायी। कालू का सब्र टूट गया और उसने उसे ओंष्ठबंधित चुम्बन कर ही डाला। एक ओंष्ठबंधित चुम्बन। पूर्णा फिर हंसी- मुंह झूठा कर दिया तूने। और तूने जो मेरा मुंह गंदा किया- कालू पलट कर बोला। जा…वो तो रस था। हाय अब कब? ब्याह ले फिर रोज पी- पूर्णा भाग गई। अब खेल खुला था। कालू मौका पाकर उसे यहां-वहां ले जाता, कभी गन्ने का रस पिलाता तो कभी पानीपूड़ी खिलाता जो पूर्णा को बहुत पसंद थी। फिर वसूली भी करता। पूर्णा बहाने बनाकर घर से निकलती और मुंह पर कपड़ा बांधकर कालू के साथ बाइक पर पीछे बैठकर यहां-वहां मौज मारती। कभी-कभी वो कपड़े भी बदल लेती जो कालू अपने घर से ले आता था ताकि कोई उसे पहचाने नहीं। ये प्यार का पागलपन था उन्माद था या वासना समझना मुश्किल है।

पर हुआ वहीं जो होता है-पूर्णा की शादी कहीं और हो गई और कालू की कहीं और। पूर्णा का पति शराबी था। उसे घर वालों ने घर से भगा दिया तो वो गली में ही एक खोली लेकर रहने लगा। पूर्णा घर-घर बर्तन मांजती। जो पैसे मिलते उससे घर चलता और पति की शराब भी। पैसे कम होते तो पति उसे मारता। जब गली इस हंगामें से गूंजती तो कालू का खून खौल उठता। गली में जब कभी वो आमने-सामने होते तो कालू पूर्णा से नजरे न मिला पाता। उसने कभी अपने आई-बापू को बताया ही नहीं था कि वो पूर्णा को चाहता है वर्ना पूर्णा के हाथों में उसके नाम की मेहंदी लगने से कौन रोक सकता था? कालू के माता-पिता को ये बात कालू की शादी के समय नहीं मालूम थी कि उसकी पत्नी के दिल में छेद था। वो बीमार ही रहती थी। शादी हो नहीं रही थी इस लिए झूठ बोलकर ये शादी करवाई गई। कालू के आई-बापू ने कहा कि ये शादी तोड़ दे पर तब तक उसकी पत्नी गर्भवती हो चुकी थी। कालू इतना अमानुष भी नहीं था। ये अद् भुत संयोग ही था कि एक ओर कालू की पत्नी तो वहीं दूसरी ओर पूर्णा भी गर्भवती हुई। कालू के यहां बच्चा हुआ, पर कोई खुशी नहीं थी क्योंकि उसकी पत्नी बीमार हो रही थी और वो चल बसी। अब बच्चा हो गया कालू के जिम्मे। जिसे नाम दिया गया सोनू। सोनू की जिम्मेदारी यूं तो आई सम्हाल लेती थी पर वो भी कालू की बहन का जापा (प्रसव ) करवाने गई है उम्र को देखते हुए बापू भी उनके साथ है। पूर्णा को भी बेटा हुआ पर यहां खुशी मनाता कौन? मां या शराबी पिता। ननिहाल में लड्डृ बंटे पर वो भी कम पड़ गए।

कालू यादों से बाहर आया। शिशु की क्षुधा का अनुभव पूर्णा कर सकती थी। अंतत: उसे चरम पर प्रतीत हुआ कि मानों वो इस देह से बाहर एक महान पूर्णता का प्राप्त कर चुकी है। बच्चे के सोने के बाद वो अपने बच्चे को लेकर बाहर जाने लगी तो कालू ने उसका हाथ पकड़ लिया। एक बार तुमको रोक न पाया पर आज तुम्हे रोकना चाहता हूं। इसलिए नहीं कि सोनू को मां चाहिए बल्कि इस लिए कि पहले मैं तुझे प्यार करता था पर अब तुझे पूजना चाहता हूं। छोड़ मुझे, एक बार गंवाया था तूने, अब भूल जा। मैं ब्याहता हूं। मेरा मर्द है और ये बच्चा भी है। वो हाथ छुड़ाकर चली गई।

उस रात बहुत तेज बरसात हुई। रात को चीखने-चिल्लाने की आवाज आई। कालू बाहर निकला। देखा तो पूर्णा के घर में हंगामा हो रहा था। वो वहां पहुंचा तो देखा पति उसे मार रहा था। बाहर कोई था ही नहीं। वो अंदर जा घुसा और उसके पति को दूर ढकेल दिया। पूर्णा चिल्लाई- जा यहां से, ये हमारा मामला है। पूर्णा के पति ने मौका देखा और कालू के हाथ में उस्तरा मारकर भाग निकला। कालू हाथ दबाकर जाने लगा तो पूर्णा ने उसे रोका पर वो घर आ गया। पीछे-पीछे पूर्णा अपने दूधमुंहे बच्चे को लेकर आई जो सो चुका था। उसने उसे वहां लेटाया। और साथ लाए कपड़े से कालू के हाथ पर पट्टी बांधी। इतने में सोनू उठ गया और रोने लगा। पूर्णा ने उसे गोद में लेटाया आंचल की आड़ कर वो उसे दूध पिलाने लगी। क्यों अपने आपको सजा दे रही है, अपने पति को छोड़कर यहां आजा, कालू ने पूर्णा से कहा। और लोग क्या कहेंगे, क्या सोचेंगे? तू उनकी परवाह करती है। तू क्या सोचेगा, क्या अबला समझकर अपनाएगा या तेरे बच्चे को मां चाहिए इसलिए या बिस्तर काट रहा है अकेले। नहीं… तू अब वो नहीं रही जिससे मुझे प्यार था। अब तू वो हो गई है जिसे मैं पूजता हूं। पाठकों को लग सकता है कि ये ऐसा मौका हो सकता है जब वो दोनों भावनाओं में बह जाएं। नैतिकता की हदें तोड़ दें पर ऐसा वास्तविक जीवन में होता नहीं है।

कालू नीचे झुका और पूर्णा के पैरों का चूम लिया। पूर्णा सकपका गई, उसकी पायल बज उठी। सोनू अब तक सो चुका था उसे वहां लेटाकर और अपने बच्चे को लेकर वो चली गई, बिना कुछ बोले।

दूसरे दिन एक आदमी दौड़ता हुआ गली में आया। उसने बताया कि पूर्णा के पति की लाश नाले में पड़ी है। पुलिस आई और कालू को उठाकर ले गई। पूर्णा का पति मर गया था पर उसकी आंखों में एक आंसू न था। बस वो चुप थी। कालू को थाने मे ं बिठा लिया। कालू को पता था कि अब पिटाई होगी। हालांकि उसने सारी बात पुलिस को बता दी थी पर पुलिस वो गुंडा गैंग है जिसे सरकारी लाइसेंस मिला है। किस मामले को दबाना है और किसे उठाना है। किसे छोडऩा है और किसे पीटना है या एनकाउंटर करना है उसे पता है और वो बेलगाम है।

थाने में बड़े साहब आए ये देखकर कालू को अपने जयजय दादा का नुस्खा याद आ गया। उसने पेंट में मूत्रत्याग कर दिया। ये देखकर बड़े साहब चिल्लाए- अरे इसे बाहर करो ये तो साला गंदा कर रहा है। सिपाही ने दो चांटे मारकर उसे निकाल दिया। वो बाहर आ गया और भूमिगत हो गया, उसे परिचित ने बता दिया कि आई और बापू लौट आए हैं। कालू सोनू की तरफ से निश्चिंत हो गया। शार्टपीएम रिपोर्ट में पता चला कि शराब पर ड्रग्स के हाईडोज से पूर्णा का पति मरा था। कालू अब लौटा और घर पहुंचा। आई ने बताया कि सोनू पूर्णा के पास है वो उसे अपना दूध पिलाती है देखभाल करती है और रात को यहां वापस दे जाती है। कालू पूर्णा के पास पहुंचा। पूर्णा वहां थी नहीं। पूछता-पाछता वो पूर्णा के पास पहुंचा। पूर्णा अब महिला सेवा नामक एनजीओ से जुड़ी थी। यहां वो सिलाई की ट्रेनिंग ले रही थी। कालू ने उससे मिन्नत की- अब क्यों विधवा का जीवन जी रही है। मैं तुझसे शादी करना चाहता हूं। तुझे सहारा देने के लिए नहीं बल्कि तेरी चेतना और श्रद्धा से अपना उद्धार करने के लिए। लोगों की नजर को पढ़। पूर्णा हल्का सा हंसी- कालू अब मैं अपना जीवन जीना चाहती हूं, मेरा नाम पूर्णा है पर पहले मैं पूर्ण नहीं थी। पहले तेरे प्यार ने मुझे को खुद को भुला दिया। पति ने जिंदगी का मोह खत्म कर दिया पर तेरे और मेरे शिशुओं ने मुझे नाम से ही नहीं मन और आत्मा से भी पूर्णा बनने को प्रेरित किया है। मैं नहीं कहती की शादी करूंगी या नहीं। तुझसे या किसी और से जो भाएगा पर अब मैं अपना जीवन जीना चाहती हूं । समाज का डर मुझे नहीं। गलत लोगों से निपटना मुझे आता है। तू मेरी चिंता मत कर अपनी जिंदगी बना। मैं तेरा इंतजार करूंगा, कालू ने चलते वक्त कहा। पूर्णा हमेशा की तरह केवल मुस्कुरायी।

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