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पूरी दुनिया में कहीं भी दिहाड़ी मजदूरों का जीवन किसी संघर्ष से कम नहीं होता है। यूं तो मजदूर सभी जगह दु:ख ही पातें है, शायद रामराज में भी इनका भला न हुआ हो और अगर यही सच है तो अब कब और कैसे इनका भला हो सकता है? ये मजदूर दबंगों के खेतों और ईंट भट्टों सहित कई जगह काम करते हैं। वहां हर स्तर पर इनका शोषण होता है। सरकार…..वो तो पूरी ईमानदारी के साथ ताकतवरों की सेज पर महकती है। उसके मखमली पैर सख्त जमीन पर पड़ते ही कहां हैं?
इस कहानी की पृष्ठभूमि हमारे की देश के बिहार राज्य की है जहां कभी भी इन मजदूरी की जिंदगी में आशा की किरण जाने की उम्मीद नहीं के बराबर है।
नईम घर में घुसते से चिल्लाया- रजिया, बाहर भिखारी खड़ा है। दो रोट डाल दे। वो अंदर चला गया। बगल में रसोई से रजिया निकली और भिखारी के कटोरे में दो रोट डाले। दोनों ने एक-दूसरे का चेहरा देखा और भिखारी के मुंह से सिर्फ एक आवाज निकली-राधा….रजिया चौंकी पर चुप रही।
कहानी जाती है वक्त की कोख में उसकी गहराई में करीब पंद्रह साल पहले।
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